दृष्टिकोण [प्रतिक्रिया लेख] — झारखंड सरकार के 2023 बजट अभिभाषण पर विकलांग अधिकार संबंधी टिपण्णी।
नोट: यह एक मौलिक रचना है, अनुवाद नहीं। कृपया व्याकरण की गलतियों के संबंध में सुधार करने के लिए स्वतंत्र महसूस करें।
डॉ. रामेश्वर उराँव (वित्त मंत्री, झारखंड सरकार) के 2023 बजट अभिभाषण पर विकलांग अधिकार संबंधी टिपण्णी।
१। महोदय आपने अपने बजट अभिभाषण के अनुच्छेद 06 में उक्त पंक्ति का उद्धरण करते हुए राज्यधर्म पर कहा है कि -
“राज्य का शासन सही तरीके से चलाने के सम्बन्ध में हमारे महान अर्थशास्त्री और राजनीतिवेत्ता कौटिल्य की उक्ति है कि -
प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम् ।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् ।।
अर्थात् प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में उसे अपना हित दिखना चाहिये। जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को प्रिय लगे उसमें है ।”
अतः, आपसे जनआकांक्षा थी की आप इस गंभीर और उचित युक्ति का पालन झारखंड के बजटीय आवंटन में भी करते हुए सभी कमज़ोर वर्ग को उसका न्यायुचित हिस्सा अवश्य ही प्रदान करेंगे। हालाँकि, ये अत्यंत ही दुख के साथ कहना हो रहा है कि ऐसा लगता है जैसे दिव्यांग वर्ग आपकी झारखंड सरकार के वरीयता में कहीं बहुत ही पीछे छूट गई है।
२। आगे आपने अनुच्छेद 8 में कहा हैं कि -
“हमारे बजट प्रस्ताव में वृद्धजनों को आसरा, महिलाओं को निश्चिन्तता, विद्यार्थियों का समग्र विकास, कन्याओं को अभय, व्यवसायियों को निर्बाध व्यवसाय का संदेश, किसानों को सम्पन्न जीवन आधार, कर्मियों को निश्चिन्त भविष्य, कर्मकारों की दैनिक कठिनाइयों का निवारण, आमजनों के जीवन-यापन की बेहतर सुविधाएँ, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर एवं प्रदेश के औद्योगिक विकास के बहुविध कार्यक्रमों एवं योजनाओं के लिए आवश्यक प्रावधान रखे गये हैं ।”
यद्यपि ये सराहनिए है कि आपने अपने बजट अभिभाषण में ऐतिहासिक रूप से पिछड़े और हाशिए पर रहने वाले तमाम वर्गों को सरकार के प्राथमिकता में रखते हुए उनके समस्याओं का संज्ञान लिया और उनके विकास को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया।
परंतु विकलांग वर्ग को पुनः फिर एक बार सरकार की उदासीनता का सामना करना पड़ा। ये तथ्य अत्यंत की दुखद है कि पूरे बजट अभिभाषण में “विकलांग” वर्ग का उल्लेख भी नहीं है। इस संधर्भ में ये प्रश्न है कि क्या विकलांग वर्ग को झारखंड सरकार पिछड़ा नहीं मानती या उनका उल्लेख करना आवश्यक नहीं समझा गया?
३। आपने अनुच्छेद 9 में कहा हैं कि -
“हमारी सरकार का मानना है कि ‘बजट’ मात्र आय-व्यय का दस्तावेज नहीं है। यह सरकार की सोच, नीयत, निष्ठा, परिश्रम, समर्पण, इच्छाशक्ति तथा प्रदेश के सर्वांगीण विकास की आकांक्षा का प्रतिबिम्ब है। साथ ही यह जनता की अपेक्षाओं एवं सपनों को ठोस रूप देता है।”
इस संदर्भ में ये पूछना है कि क्या विकलांग वर्ग झारखंड सरकार की सोच और नियत से बाहर है? क्या विकलांग वर्ग झारखंड प्रदेश के सर्वांगीण विकास की आकांक्षा की रूपरेखा की परिसीमा से बाहर है जिसका मात्र प्रतीकवाद ही उचित समझा गया है? क्या विकलांग वर्ग के लिए बजटीय आवंटन प्रक्रिया निराशा और सरकारी उदासीनता के एक और क्षण बनकर नहीं रह गया है? क्या बजटीय आवंटन प्रक्रिया तब तक समावेशी होने का दंभ भर सकती जबतक वास्तविकता में विकलांग वर्ग आज भी मात्र पेंशन या वृत्ति के ही अधिकारी समझे जाते है? क्या बजटीय आवंटन प्रक्रिया विकलांग वर्ग की अपेक्षाओं एवं सपनों को ठोस रूप देता दिखता है?
इन सभी प्रश्नों का उत्तर ना ही हमारे सरकारों को परंतु साथ ही समाज को भी देना अत्यंत ही आवश्यक है क्यूकी विकलांग वर्ग आज सरकार के साथ ही समाज की प्राथमिकता में भी बहुत पीछे छूट गया हैं जहां विकलांग वर्ग का उदासीनता एक प्रमुख मुद्दा भी नहीं बन पा रहा।
बजटीय आवंटन प्रक्रिया को वास्तविकता में समावेशी बनाने हेतु विकलांग वर्ग को अनुदानो की विस्तृत मांगे के एक मद से बाहर निकलकर विकलांग वर्ग के संपूर्ण विकास और सशक्तिकरण हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सुगम्यता, सामाजिक सुरक्षा, विकलांगता-समावेशी आपदा प्रबन्धन (आपदा जोखिम न्यूनीकरण), जलवायु परिवर्तन, इत्यादि गंभीर विषयों में विकलांग-समर्पित नीतियां और योजनाएं बनाये जाने की आवश्यकता हैं।
४। आपने अनुच्छेद 12 में कहा हैं कि -
“अध्यक्ष महोदय, राज्य की सामाजिक, आर्थिक गतिविधियों की निरन्तरता बनाये रखने के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (Ease of Doing Business) के साथ-साथ ईज ऑफ लिविंग (Ease of Living) भी आवश्यक है। इसको ध्यान में रखते हुए सभी व्यक्तिगत योजनाओं के तहत DBT के माध्यम से भुगतान करने, सभी प्रकार के प्रमाण-पत्रों को सुलभ तरीके से ऑन लाईन / ऑफ लाईन उपलब्ध कराने, सभी प्रकार का भुगतान डिजिटल मोड में करने, अभियान चलाकर सभी छात्र-छात्राओं के प्रमाण-पत्र उनके विद्यालयों में ही उपलब्ध कराने की कार्रवाई आगामी वित्तीय वर्ष में और तेजी से की जायेगी।”
राज्य सरकार की ये बहुत ही सराहनिये प्रयास हैं जहां ईज ऑफ लिविंग (Ease of Living) की आवश्यक पर महत्त्वता दी गई है। इस प्रसंग में बस इतना रेखांकित करना है की विकलांगता प्रमाण पत्र [यूडीआईडी कार्ड] समेत सभी अन्य अत्यावश्यक सेवाएं, जो विकलांग वर्ग के लिए जीवन स्तर में सुधार लाने में उपयोगी हो उनका समावेश और कार्यान्वयन कर इसका लाभ विकलांग वर्ग को एक सीमित समय सीमा में प्रदान कराया जाये।
५। आपने अनुच्छेद 13 में कहा हैं कि -
“आपकी सरकार, आपके द्वार कार्यक्रम के क्रम में आम जनता के दरवाजों तक पहुँच कर उनकी समस्याओं के समाधान निकाले गए, जिसके उत्साहवर्धक परिणाम सामने आये हैं ।”
ई-गवर्नेंस, जो सेवाओं के नागरिक-केंद्रित वितरण पर आधारित हैं, उसमे विकलांग वर्ग की भागीधारी भी सुनिश्चित होनी चाहिए ताकि समाज का कोई भी पिछड़ा वर्ग विकास के इस यात्रा में पीछे ना छूट जाये। “अमृत काल” में दिए जा रहे प्रोत्साहन निस्संदेह चल रहे डिजिटलीकरण और प्रौद्योगिकी के उपयोग से नीति कार्यान्वयन में एक मिल का पत्थर साबित होगा जिसका लाभ विकलांग वर्ग को भी मिलना चाहिए।
“सबका साथ, सबका विकास” की भावना को सुनिश्चित करने के लिए “प्रशासन गांव की ओर” और “आपकी सरकार, आपके द्वार” जैसे कार्यक्रम सराहनिये है। साथ ही ये आशा हैं की दिव्यांगजनों के ईज ऑफ लिविंग (Ease of Living) को सुनिश्चित करने हेतु सेवाओं को सीधे घर पहुँचने संबंधित अभियानों के तहत विकलांगता प्रमाणन प्रक्रिया को ऐसे योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया जाएगा। सेवाओं की ऑनलाइन व्यवस्था और डोरस्टेप डिलीवरी जैसे अभिनव पहल विकलांगता प्रमाणन प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनायेंगे, जो लंबे समय से सुगम्यता की कमी, दुर्गम बुनियादी ढांचे, अनियमित चक्रों, व्यवहार बाधा, चिकित्सको की कमी, चिकित्सा मूल्यांकन की कम अवधि, जैसे इत्यादि समस्यों के कारण बाधित होती रही है और यूडीआईडी कार्ड बनाना अपने आप में एक युद्ध जीतने जैसा हो गया हैं। विकलांगता प्रमाण पत्र ना ही दिव्यांगजनों के लिए अपने पहचान का एक आधार है पर साथ ही दूसरी अन्य योजनाओं और आधारभूत अधिकारों का दावेदार भी बनाता है।
६। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता की उद्घोषणा को कार्यान्वित करता है और उनकी शिक्षा, उनके रोजगार, बाधारहित परिवेश का सृजन, सामाजिक सुरक्षा, इत्यादि का प्रावधान करता है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 28.12.2016 को अधिनियमित किया गया था जो 19.04.2017 से लागू हुआ था। अधिनियम की मुख्य विशेषताएं हैं: -
(१) यह सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी उपाय करने के लिए उपयुक्त सरकारों पर जिम्मेदारी डाली गई है कि विकलांग व्यक्ति दूसरों के साथ समान रूप से अपने अधिकारों का आनंद लें।
(२) विकलांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है।
(३) अधिनियम में २१ निर्दिष्ट अक्षमताएं शामिल हैं।
(४) बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों और उच्च समर्थन आवश्यकताओं वाले लोगों के लिए अतिरिक्त लाभ प्रदान किए गए हैं।
(५) 6 से 18 वर्ष की आयु के बीच बेंचमार्क विकलांगता वाले प्रत्येक बच्चे को मुफ्त शिक्षा का अधिकार होगा।
(६) बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों के लिए सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त उच्च शिक्षण संस्थानों में सीटों में 5% आरक्षण।
(७) सार्वजनिक भवनों (सरकारी और निजी दोनों) में निर्धारित समय-सीमा में पहुंच सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है।
(८) बेंचमार्क विकलांगता वाले कुछ व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण।
इसके साथ ही सुगम्य भारत अभियान विकलांग व्यक्तियों के लिए सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के विकलांगजन सशक्तिकरण विभाग द्वारा शुरू किया गया एक देशव्यापी अभियान है। अभियान का उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में भागीदारी करने के लिए समान अवसर एवं आत्मनिर्भर जीवन प्रदान करना है। सुगम्य भारत अभियान सुगम्य भौतिक वातावरण, परिवहन, सूचना एवं संचार पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर केंद्रित है।
७। आचार्य चाणक्य की इस उक्ति का हवाला देना उपयुक्त है, -
“कालाति क्रमात् काल एव फलम पिबति” (अर्थ — जब सही समय पर सही कार्य नहीं किया जाता है, तो समय ही कार्य के उद्देश्य को विफल कर देता है)
हर असफल समय सीमा और सुगम्य भारत अभियान के समय सीमा के विस्तार के साथ विकलांग वर्ग एक-एक करके पीढ़ी को खो रहा है जो अपने अनुकूलतम क्षमता से वंचित रह जाते हैं। विकलांगता प्रमाण पत्र और सुगम्यता के अभाव के कारण विकलांग वर्ग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, चिकित्सा और अन्य मूलभूत सुविधाओं और अधिकारों से वंचित होकर, अंतर्निहित गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए संघर्ष करने को विवश हैं।
वस्तुतः, आज जब हम नवीन भारतवर्ष की अमृतकाल मना रहे और अगले पच्चीस वर्षों का रूपरेखा खींच रहे है — एक ऐसे भारत की जो ना ही दुनिया में अपनी एक अनोखी पहचान एक वैश्विक शक्ति के रूप में बनाये, पर साथ की अपने सांस्कृतिक और सभ्यतागत मूल्य से भी एकीकृत हो जहां “सर्वम् खल्विदम् ब्रह्म” (संसार में जो कुछ भी है, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, जड़-चेतना, ईश्वर का रूप है, हमारा विस्तार है), राज्यधर्म, न्याय, और नीति के सिद्धांतों के स्तंभ पे मज़बूती से टीका हो जहां सभी को आधारभूत अधिकार और उन अधिकारों को वास्तविकत रूप देने के लिए सामर्थ्य, साधन, और माध्यम प्राप्त हो तो ये बहुत ही प्रासंसिक हो जाता है कि कोई भी पीछे ना छूट जाये।
अतः, इस उम्मीद से मैं अपनी वाणी को विराम देना चाहूँगा की सरकार सहित सभी हितधारक आने वाले समय और बजट में प्रतीकवाद से ऊपर उठकर विकलांग वर्ग के सही मायने में समावेशन हेतु विकलांग-समर्पित नीतियां और योजनाएं बनायेंगे और उनके उचित कार्यान्वयन हेतु राज्यधर्म और न्यायुचित बजटीय आवंटन भी होगा।
संदर्भ
2. विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016
4. झारखंड सरकार 2023 बजट अभिभाषण
सर्जक
अभिषेक कुमार, NCPEDP- जावेद आबिदी डिसेबिलिटी पर फेलो एवम् क्यूरेटर, द सांग्यान ।
लेखक से abhishek.ncpedp@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।